रेल सम्पत्ति (विधिविरुद्ध कब्जा) अधिनियम, 1966 ( Railway Property (Unlawful Possession) Act, 1966 )

(ङ) “वरिष्ट अधिकारी" से रेल संरक्षण बल अधिनियम, 1957 (1957 का 23) की धारा 4 के अधीन नियुक्त अधिकारियों में से कोई अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत बल के वरिष्ठ अधिकारी के रूप में केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त कोई अन्य अधिकारी भी है;

(च) इस अधिनियम में प्रयुक्त किन्तु अपरिभाषित और भारतीय रेल अधिनियम, 1890 (1890 का 9) में परिभाषित शब्दों और पदों के क्रमशः वे ही अर्थ होंगे जो उन्हें इस अधिनियम में दिए गए हैं ।

3. [रेल सम्पत्ति की चोरी, बेईमानी से दुर्विनियोग या विधिविरुद्ध कब्जे के लिए शास्तिट-2[जो कोई किसी ऐसी रेल सम्पत्ति की चोरी करेगा या उसका बेईमानी से दुविर्नियोग करेगा या उस पर कब्जा रखता पाया जाएगाट या जिसके बारे में यह साबित हो जाएगा कि उसका किसी ऐसी रेल सम्पत्ति पर कब्जा रहा है, जिसके बारे में यह समुचित संदेह हो कि वह चुराई हुई है या विधिविरुद्धतया अभिप्राप्त की गई है, वह, जब तक यह साबित न करे कि वह रेल सम्पत्ति उसके कब्जे में विधिपूर्वक आई थी, -

(क) प्रथम अपराध के लिए कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा तथा विशेष और पर्याप्त कारणों के, जो न्यायालय के निर्णय में वर्णित किए जाएंगे, अभाव में, ऐसा कारावास एक वर्ष से कम का नहीं होगा और ऐसा जुर्माना एक हजार रुपए से कम का नहीं होगा;

(ख) दूसरे या पश्चात्वर्ती अपराध के लिए, कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी दंडनीय होगा, और विशेष और पर्याप्त कारणों के, जो न्यायालय के निर्णय में वर्णित किए जाएंगे, अभाव में, ऐसा कारावास दो वर्ष से कम का नहीं होगा और ऐसा जुर्माना दो हजार रुपए से कम का नहीं होगा ।

[स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए चोरी" और बेईमानी से दुर्विनियोग" के वही अर्थ होंगे जो क्रमशः भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 378 और धारा 403 में उनके हैं |]

[4. अपराधों के दुष्प्रेरण, षड्यंत्र या उनके प्रति मौनानुकूलता के लिए दंड]-[जो कोई, इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध करने का दुष्प्रेरण करेगा या उसका षड्यंत्र करेगा या भूमि या भवन का कोई स्वामी] या अधिभोगी, अथवा ऐसे स्वामी या अधिभोगी का उस भूमि या भवन के प्रबंध का भारसाधक कोई अभिकर्ता जो इस अधिनियम के उपबंधों के विरुद्ध किसी अपराध के प्रति जानबूझकर मौनानुकूल रहेगा, कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

[स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए दुष्प्रेरण" और षड्यंत्र" के वही अर्थ होंगे, जो क्रमशः भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 107 और धारा 120क में उनके हैं |]

5. अधिनियम के अधीन अपराधों का संज्ञेय होना-दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) में किसी बात के होते हुए भी इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध संज्ञेय नहीं होगा ।

6. वारंट के बिना गिरफ्तार करने की शक्ति-कोई भी वरिष्ठ अधिकारी या बल-सदस्य, किसी मजिस्टेट्र के आदेश के बिना और किसी वारंट के बिना, किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध से संबद्ध रहा हो या जिसके विरुद्ध ऐसे संबद्ध रहने का समुचित संदेह हो ।

7. गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के संबंध में कार्यवाही करना-इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया प्रत्येक व्यक्ति, यदि गिरफ्तारी बल-अधिकारी से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा की गई हो तो, अविलम्ब निकटतम बल-अधिकारी के पास भेज दिया जाएगा ।

8. [जांच कैसे की जाएगी]-(1) [जब कोई बल-अधिकारी इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के होने के बारे में सूचना प्राप्त करता है या जब कोई व्यक्तिट इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिए किसी बल-अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किया जाए या धारा 7 के अधीन उसके पास भेजा जाए तब वह उस व्यक्ति के विरुद्ध आरोप की जांच करने के लिए अग्रसर होगा ।

(2) इस प्रयोजन के लिए बल-अधिकारी उन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा और उन्हीं उपबन्धों के अध्यधीन होगा जिनका प्रयोग पुलिस थाने का भारसाधक आफिसर दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) के अधीन तब कर सकता है और जिनके अध्यधीन वह तब होता है जब वह किसी संज्ञेय मामले का अन्वेषण करता है :

(क) यदि बल-अधिकारी की यह राय हो कि अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य या संदेह का समुचित आधार है तो वह उस मामले में अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने के लिए उसकी जमानत ले लेगा या उसे अभिरक्षा में ऐसे मजिस्ट्रेट को भेज देगा ;

(ख) यदि बल-अधिकारी को यह प्रतीत हो कि अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य या संदेह का समुचित आधार नहीं है तो वह अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष यदि और जब वैसी अपेक्षा की जाए, हाजिर होने के लिए प्रतिभू सहित या रहित, जैसा बल-अधिकारी निदेश दे, बन्धपत्र निष्पादित करने पर अभियुक्त व्यक्ति को छोड़ देगा और मामले की सभी विशिष्टियों की पूरी रिपोर्ट अपने शासकीय वरिष्ठ को देगा ।

9. साक्ष्य देने और दस्तावेजें पेश करने के लिए व्यक्तियों को समन करने की शक्ति-(1) किसी भी बल-अधिकारी को किसी ऐसे व्यक्ति को समन करने की शक्ति होगी जिसकी हाजिरी वह ऐसी किसी जांच में, जो वह अधिकारी इस अधिनियम के किसी प्रयोजन के लिए कर रहा हो, या तो साक्ष्य देने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के लिए आवश्यक समझे ।

(2) दस्तावेजें या अन्य चीजें पेश करने के लिए समन कुछ विनिर्दिष्ट दस्तावेजों या चीजों को पेश करने के लिए या किसी निश्चित वर्णन की सभी ऐसी दस्तावेजों या चीजों को पेश करने के लिए हो सकेगा जो समनित व्यक्ति के कब्जे में या उसके नियंत्रण के अधीन हों ।

(3) इस प्रकार समनित सभी व्यक्ति, या तो स्वयं या प्राधिकृत अभिकर्ता द्वारा, जैसा भी ऐसा अधिकारी निदेश दे, हाजिर होने के लिए आबद्ध होंगे, और इस प्रकार समनित सभी व्यक्ति किसी ऐसे विषय पर, जिसके संबंध में उनकी परीक्षा की जाए, सत्य कथन करने के लिए, या ऐसे कथन करने और ऐसी दस्तावेजें या अन्य चीजें पेश करने के लिए आबद्ध होंगे जिनकी अपेक्षा की जाए :

परन्तु इस धारा के अधीन हाजिरी की अपेक्षाओं को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 132 और 133 के अधीन छूटें लागू होंगी ।

(4) यथापूर्वोक्त प्रत्येक जांच भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के अर्थ में न्यायिक कार्यवाही" समझी जाएगी ।

10. तलाशी वारंट का जारी किया जाना-(1) यदि किसी बल-अधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण हो कि कोई स्थान ऐसी रेल सम्पत्ति के, जो चुराई या विधिविरुद्धतया अभिप्राप्त की गई थी, निक्षेप या विक्रय के लिए उपयोग में लाया जाता है तो वह, जिस क्षेत्र में वह स्थान स्थित हो उस पर अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट से तलाशी का वारंट जारी करने के लिए आवेदन करेगा ।

(2) जिस मजिस्ट्रेट से उपधारा (1) के अधीन आवेदन किया जाए वह, ऐसी जांच करने के पश्चात्, जो वह आवश्यक समझे, अपने वारंट द्वारा किसी भी बल-अधिकारी को प्राधिकृत कर सकेगा कि वह-

(क) ऐसी सहायता सहित, जैसी अपेक्षित हो, उस स्थान में प्रवेश करे;

(ख) वारंट में विनिर्दिष्ट रीति से उसकी तलाशी ले;

(ग) उसमें पाई गई किसी ऐसी रेल सम्पत्ति पर कब्जा करे, जिसके बारे में उसे यह समुचित संदेह हो कि वह चुराई हुई है या विधिविरुद्धतया अभिप्राप्त की गई है; तथा

(घ) ऐसी रेल सम्पत्ति को किसी मजिस्ट्रेट के पास ले जाए या तब तक उस सम्पत्ति को उसी स्थान पर पहरे में रखे जब तक अपराधी मजिस्ट्रेट के समक्ष नहीं ले जाया जाता अथवा अन्यथा उसे किसी सुरक्षित स्थान पर रखवाए ।

11. तलाशियां और गिरफ्तारियां कैसे की जाएंगी-इस अधिनियम के अधीन की जाने वाली सभी तलाशियां और गिरफ्तारियां दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) के क्रमशः उन उपबन्धों के अनुसार की जाएंगी जो उस संहिता के अधीन की जाने वाली तलाशियों और गिरफ्तारियों के संबंध में हैं ।

12. अधिकारियों से सहायता की अपेक्षा-सरकार के सभी अधिकारी और सभी ग्राम अधिकारी, इस अधिनियम के प्रवर्तन में वरिष्ठ अधिकारियों और बल सदस्यों की सहायता करने के लिए एतद्द्वारा सशक्त और अपेक्षित किए जाते हैं ।

13. यानों यदि के समपहरण का आदेश देने की न्यायालयों की शक्ति-इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का विचारण करने वाला न्यायालय किसी ऐसी सम्पत्ति का जिसके बारे में उस न्यायालय का समाधान हो जाए कि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया गया है, सरकार के प्रति समपहरण किए जाने का आदेश दे सकेगा और किन्हीं ऐसे पात्रों, पैकेजों या आवेष्टकों का, जिनमें ऐसी सम्पत्ति हो, तथा ऐसी सम्पत्ति को वहन करने में प्रयुक्त जीव-जन्तुओं, यानों या अन्य वाहनों का समपहरण किए जाने का आदेश भी दे सकेगा ।

14. इस अधिनियम का अन्य विधियों पर अध्यारोही होना-इस अधिनियम के उपबन्ध किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में उनसे असंगत किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे ।

15. जो विधियां जम्मू-कश्मीर में प्रवृत्त नहीं हैं उनके प्रति निर्देशों का अर्थान्वयन-इस अधिनियम में किसी ऐसी विधि के प्रति, जो जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवृत्त नहीं हैं, किसी निर्देश का अर्थ, उस राज्य के संबंध में यह लगाया जाएगा कि वह उस राज्य में प्रवृत्त किसी तत्स्थानी विधि के प्रति, यदि कोई हो, निर्देश है ।

16. निरसन और व्यावृत्तियां-(1) रेल भंडार (विधिविरुद्ध कब्जा) अधिनियम, 1955 (1955 का 51) एतद्द्वारा निरसित किया जाता है ।

(2) इस अधिनियम की कोई बात एतद्द्वारा निरसित अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराधों को लागू न होगी और ऐसे अपराधों का अन्वेषण और विचारण इस प्रकार किया जाएगा मानो यह अधिनियम पारित ही न हुआ हो ।

(3) यह न माना जाएगा कि उपधारा (2) में विशिष्ट विषयों का वर्णन निरसनों के प्रभाव के संबंध में साधारण खण्ड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) की धारा 6 के साधारणतया लागू होने पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है या उसे प्रभावित करता है ।